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(कालिदास से साभार)
हाथ मैं ने
उँचाए हैं
उन फलों के लिए
जिन को
बड़े हाथों की प्रतीक्षा है।
फलों को
मैं देखता हूँ
जानता हूँ
चीन्हता हूँ
और
उन के लिए
मुझ में ललक भी है।
हाथ मैं ने
उँचाए हैं
उन फलों के लिए
जिन को
बड़े हाथों की प्रतीक्षा है
डर नहीं है
हँसा जाऊँगा !
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